मोहब्बत का असर होगा,
ग़लतफहमी में हम रहते हैं,
बदलेगा चलन उनका,
मन ही मन ये कहते हैं,
टूटा है भरम अपना,
फिर भी भरम में जीते हैं,
चुप चुप के हम रोते हैं,
और खुद ही खुद में हस्ते हैं,
पागल हैं हम दीवाने हैं,
उन को ही सोचा करते हैं,
रातों को जागते हैं,
दिन को सपनो में उन्हे ही देखा करते हैं,
जानते हैं असलियत भी,
फिर भी उन्हीं पे मरते हैं,
जीते हैं न मरते हैं,
ख़ुशी से ग़म को सहते हैं,
Wednesday, January 19, 2011
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